मुझे एक बार फिर से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की यात्रा पर आने पर अत्यंत आनंद और प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
यहां की हर यात्रा उन स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने का अवसर है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए इस पावन क्षेत्र में अत्यंत कठिनाई और दु:ख भुगते। हमारा राष्ट्रीय स्मारक ‘सेल्यूलर जेल’ उनके द्वारा दिए गए बलिदानों का साक्षी है। यह उन बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों की उत्कट देशभक्ति का प्रतीक है जिन्होंने अपनी युवावस्था यहां कारावास में बिताई।
यह मनोरम क्षेत्र भारत की मुख्य भूमि से 1200 किलोमीटर दूर होगा, परंतु वास्तव में यह, देश के विभिन्न भागों से यहां आकर बसने वालों और स्थानीय जनजातियों के कारण ‘लघु भारत’ का प्रतिनिधित्व करता है। यह ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत का उदाहरण है। इसके अद्भुत और आपस में जुड़े हुए बहु-सांस्कृतिक, बहु-भाषीय समाज ने बाकी देश के सम्मुख एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
इन द्वीपों का असीम सौंदर्य और वैभव, अद्भुत सौंदर्ययुक्त समुद्री तटों सहित इसके घने वन और समुद्री सम्पदा, तटीय वनस्पति और जीव, प्रकृति का आश्चर्य हैं।
माना जाता है कि दूसरी सदी के रोमन भूगोलवेत्ता पटोलेमी ने ‘सौभाग्य के द्वीपों’ के रूप में उल्लेख करते हुए, इन्हें विश्व के मानचित्र में स्थान दिया है।
ब्रिटेन की समुद्री गतिविधियों ने इस मनोरम स्थिति पर ग्रहण लगा दिया। दो सौ वर्ष पूर्व, लैफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर द्वारा सर्वेक्षण किए गए द्वीप पोर्ट कार्नवालिस की प्रथम बस्ती के रूप में ब्रिटेन के अधीन चले गए। लोगों को स्वतंत्रतापूर्वक जीवन नहीं जीने देने और उनकी प्रगति में मदद न करते हुए, अंग्रेजों ने इस द्वीप समूह को सजा की बस्ती में बदल दिया।
बरींद्रनाथ घोष, वीर सावरकर और त्रैलोक्य महाराज को, जिन्होंने साम्राज्यवादी सत्ता को चुनौती देने का साहस किया था, यहां लाकर सेल्युलर जेल में कैद कर दिया गया।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का, हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों की अधीनता से द्वीपों को मुक्त करवाने के लिए इन हिस्सों में जापान की सफलता से प्राप्त अवसर का लाभ उठाया। जापानी नौसेना से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को ग्रहण करने के लिए नेताजी 29 दिसंबर, 1943 को अंडमान पहुंचे। वह रोस द्वीप में ब्रिटिश चीफ कमीश्नर द्वारा छोड़े हुए आवास में रुके। उन्होंने 30 दिसंबर, 1943 को जिमखाना मैदान में राष्ट्रीय तिरंगा फहराया। उन्होंने सेलुलर जेल की भी यात्रा की। वह 1 जनवरी, 1944 को रंगून के रास्ते विमान से वापस बैंकॉक रवाना हो गए।
नेताजी ने कर्नल ए.जी. लोगनादन को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का चीफ कमिश्नर नियुक्त किया। कर्नल लोगनादन, आजाद हिंद फौज के चार अन्य अधिकारियों के साथ 11 फरवरी, 1944 को पोर्ट ब्लेयर पहुंचे और अंडमान में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह हमारे कुछ अत्यंत मूल्यवान जन-जातीय समुदायों के घर हैं। ये समुदाय, आधुनिकीकरण के माध्यम से प्रगति की दिशा में देश के प्रयासों में भी समान रूप से भागीदार हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों में प्रगति आनी चाहिए परंतु यह स्थानीय लोगों, उनकी परंपराओं तथा उनकी पारिस्थितिकी को ध्यान में रखकर होनी चाहिए। जन-जातियों के बीच कार्यरत लोगों को न केवल समर्पण की भावना के साथ वरन् समझ और सहानुभूति की भावना के साथ इस कार्य को करना चाहिए।
प्रकृति के इतने निकट रहने से ये द्वीप और इसके लोग भूकंप, सुनामी और चक्रवात जैसे विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से अधिक प्रभावित रहते हैं। 2004 में सुनामी के तुरंत बाद मैंने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की यात्रा की और यहां हुए विनाश और विध्वंस को देखा। इन द्वीपों के लोगों की सहनशक्ति ही है जिसके कारण सरकार के सहयोग से पुनर्निर्माण और पुनर्वास के विशालकाय कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करना संभव हो पाया।
उसके बाद से इस द्वीप समूह ने पिछले कुछ महीनों के दौरान ‘फैलिन’ और ‘लहर’ नामक दो चक्रवातों का सामना किया है। प्रशासन, लोगों के सहयोग से इन आपदाओं पर प्रभावी रूप से निबटने में सफल रहा।
मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि अंडमान और निकोबार प्रशासन ने हाल ही में पूरे द्वीप समूह में सफलतापूर्वक एक बड़ा आपदा प्रबंधन अभ्यास आयोजित किया। मुझे विश्वास है कि ऐसे अभ्यासों से हमारी आपदा तैयारी काफी बढ़ जाएगी।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के महत्त्वूपर्ण संगम पर स्थित हैं। ये द्वीप समूह दक्षिण-पूर्व एशिया से केवल कुछ ही सौ किलोमीटर दूर होंगे। यहां पर एकल त्रिसेना कमान की तैनाती, भारत की रक्षा दृष्टि से इस द्वीप समूह की सामरिक स्थिति को स्पष्ट करती है।
इसके अलावा, भारत के लगभग 30 प्रतिशत अनन्य आर्थिक क्षेत्र तथा सहवर्ती समुद्री संसाधन इन्हीं द्वीप समूहों के आसपास हैं। यह द्वीप समूह न केवल बंगाल की खाड़ी के समुद्री द्वार पर हैं वरन् महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों के भी करीब है।
इन द्वीप समूहों में दक्षिण-पूर्व एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र में भारत के संबंधों के लिए प्रोत्साहन केंद्र के रूप में कार्य करने की क्षमता है। इन्हें प्रमुख व्यापार, नौवहन तथा पर्यटन केंद्र के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
अंडमान, मुख्य भूमि से एक हजार मील की दूरी पर स्थित है और इस तथ्य के कारण कि यह बंगाल की खाड़ी में 700 किलोमीटर तक फैला हुआ है, इसके सुरक्षा, संयोजन और संसाधनों और सामग्री की आपूर्ति के निहितार्थ हैं। इसके परिणामस्वरूप, आर्थिक विकास और रोजगार के अवसर बाधित होते हैं।
मुझे नए जलयानों की प्राप्ति, वायु सेवाओं के विस्तार तथा दूरसंचार सम्पर्क परियोजनाओं आदि अवसंरचनात्मक और परिवहन में सुधार के लिए प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी है। भारत सरकार, अंडमान और निकोबार की जनता और प्रशासन को इन प्रयासों में सभी आवश्यक सहयोग प्रदान करेगी।
हमारा लक्ष्य संवेदनशील पारिस्थितिकी और हमारी स्थानीय जनजातियों के हितों के प्रति जागरूक रहते हुए सतत् और समावेशी विकास को बढ़ावा देना है। मुझे विश्वास है कि आप सभी अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों और प्रशासन के अधिकारियों के सक्रिय नेतृत्व में इस उद्देश्य को हासिल कर सकेंगे।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के अत्यंत प्रतिभावान बच्चों और युवाओं के लिए एक विशेष बात। आप भविष्य की हमारी उम्मीद हैं। आपमें, इस तेजी से बदल रही दुनिया में, परिवर्तन दूत बनने की अपार संभावनाएं और अवसर हैं। जहां चाह होती है, वहां राह होती है। मुझे विश्वास है कि कठोर परिश्रम, साहस और लगन से आप इस द्वीप समूह और मातृभूमि को उच्च शिखर पर ले जाएंगे।
मैं इस आकर्षक, स्वच्छ और हरे-भरे पोर्ट ब्लेयर शहर के लिए पोर्ट ब्लेयर के लोगों, पोर्ट ब्लेयर नगर परिषद और प्रशासन को बधाई देता हूं। मैं आप सभी को अपने हार्दिक स्वागत के लिए धन्यवाद करता हूं। मैं आप द्वारा दर्शाए गए प्रेम से वास्तव में अभिभूत हूं।
जयहिंद!