भारत में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के स्वामी अध्यक्ष प्रबंधन कार्यक्रम के पूर्व विद्यार्थी पुनर्मिलन समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 23.02.2014
1. मुझे हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के स्वामी अध्यक्ष प्रबंधन कार्यक्रम के पूर्व विद्यार्थियों, जो अपने पुनर्मिलन समारोह के लिए भारत में है, को संबोधित करने का अवसर प्राप्त करके प्रसननता हुई है। आरंभ में, मैं आप सभी का राष्ट्रपति भवन में हार्दिक स्वागत करता हूं।
2. व्यवसाय स्वामियों और उद्यमियों के लिए स्वामी अध्यक्ष प्रबंधन कार्यक्रम हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में से एक है। इसका उद्देश्य कारपोरेट की प्रगति और नेतृत्व के लिए और अधिक विशेषज्ञता विकसित करना है। इस विशिष्ट पाठ्यक्रम में भाग लेने वाले विभिन्न राष्ट्रों के व्यावसायिक प्रमुखों से मिलना मेरा सौभाग्य है। मुझे बताया गया है कि पूर्व विद्यार्थियों में 13 प्रतिशत भारतीय हैं। मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई है कि यह बैच भारतीय उद्योग की प्रमुख हस्ती रतन टाटा के सम्मान में 2013 में आरंभ किए गए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के टाटा हॉल एक्जीक्यूटिव एजुकेशन सेंटर में शिक्षा प्राप्त अधिकारियों का प्रथम समूह था।
देवियो और सज्जनो,
3. कारपोरेट क्षेत्र की किसी भी अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका होती है। विश्व-भर में आर्थिक गतिविधि के सुचारू कामकाज में इसकी स्नेहक की भूमिका है। 2008 के वित्तीय संकट के बाद से, विश्व अर्थव्यवस्था अत्यंत दबाव में रही है। मंदीपूर्ण वैश्वीकृत आर्थिक विकास का वैश्वीकृत दुनिया पर संक्रामक प्रभाव पड़ा है। कोई भी अर्थव्यवस्था इसके परिणामों से अछूती नहीं रह सकी है। 44 प्रतिशत के सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था के साथ व्यापक रूप से जुड़ी हुई है। भारत ने भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभाव को महसूस किया है। हमारी अर्थव्यवस्था में, जिसने पिछले 10 वर्षों में से छह वर्षों में 8 प्रतिशत से ज्यादा विकास दर हासिल की है, 2011-12 और 2012-13 की गिरावट देखी गई है।
4. आज विश्व अर्थव्यवस्था में पुन: वापसी के संकेत दिखाई दे रहे हैं परंतु इसका सुदृढ़ीकरण इस पर निर्भर करता है कि इसके विकास केंद्र अमरीका और यूरोप कितनी शीघ्रता से उभरते हैं। जहां तक भारत का संबंध है, इसकी विकास संभावनाओं तथा वृहद अर्थव्यवस्था की स्थिरता के बारे में निरंतर चिंताएं अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। यह सच है कि से 2003-04 के बाद निवेश में तेजी से जो उच्च आर्थिक विकास हुआ, उसमें 2007-08 के बाद से गिरावट आई है। परंतु अनेक उपायों के जरिए, हमने निवेश में तेजी लाने की आवश्यक परिस्थितियां तैयार की हैं। हम एक बाधारहित, अनुमान योग्य, सुविधाजन्य और पारदर्शी व्यवसाय अनुकूल माहौल के प्रति अपनी वचनबद्धता पर दृढ़ बने रहे हैं। निवेश परियोजनाओं के संचालन में सुधार की आवश्यकता को पहचानते हुए, हमने एक ऐसा तंत्र निर्मित किया है जिसका लक्ष्य विशाल ढांचागत परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी लाना है।
5. आर्थिक प्रगति के साधन के तौर पर, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में हमारा दृढ़ विश्वास, हमारे अर्थव्यवस्था सुधार कार्यक्रम का एक प्रमुख तत्त्व है। भारत को, विदेशी निवेशकों का एक सबसे पसंदीदा गंतव्य बताया जाता है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की मात्रा 2011-12 में, 35 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गई। हालांकि यह बाद में कुछ कम हो गई, परंतु मुझे विश्वास है कि वैश्विक कारोबार रुझानों के उबरने से, हम विदेशों से काफी निवेश प्राप्त कर पाएंगे। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की मात्रा की सुगम्यता के लिए, हमने खुदरा और दूर संचार जैसे अनेक क्षेत्रों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सीमाओं को बढ़ाया है तथा बैंकिंग क्षेत्र के प्रतिबंधों को दूर किया है। भारत में, आधारभूत ढांचे के साथ गहराई से जुड़े क्षेत्र—ऑटोमोबाइल, इस्पात और सीमेंट ने अत्यधिक विकास किया है। ढांचागत क्षेत्र विदेशी निवेश के उपयोगी प्रयोग के व्यापक अवसर उपलब्ध करवाते हैं। मुझे उम्मीद है कि आर्थिक विकास में तेजी लाने के लिए शीघ्र ही निवेश जोर पकड़ेगा।
6. मैं यहां पर एक टिप्पणी जोड़ना चाहूंगा कि यद्यपि भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2012-13 में 4.5 प्रतिशत था परंतु फिर भी यह बहुत सी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर के मुकाबले ज्यादा था। 2013-14 में विकास दर के 4.9 प्रतिशत के अनुमान के साथ, मुझे विश्वास है कि हमने बदलाव के बिंदु को पार कर लिया है और कुछ ही वर्षों में हम 7-8 प्रतिशत की उच्च विकास गति दोबारा हासिल कर लेंगे।
देवियो और सज्जनो,
7. हाल के विचलन के बावजूद, हमारी वृहद आर्थिक परिस्थिति—मूल्य स्थिरता, राजकोषीय संतुलन और विदेशी सेक्टर भविष्य में उच्च विकास को बढ़ाएगी। बहुत से देशों में आर्थिक प्रबंधन के लिए राजकोषीय समेकन एक प्रमुख कार्यसूची है। भारत में वित्तीय बचतों का बहुत बड़ा हिस्सा राजकीय घाटे को पूरा करने में चला जाता है जिससे निवेश के लिए थोड़ा हिस्सा बचता है। राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की दिशा में, डीजल कीमतों के गैर विनियमन जैसे कदम उठाए गए हैं, जिसके उत्साहजनक परिणाम निकले हैं। राजकोषीय घाटे को निरंतर घटाकर 2016-17 तक 3 प्रतिशत के लक्ष्य तक लाना हमारी पहुंच में है। हमारे वृहद बुनियादी तत्त्व मजबूत बने हुए हैं जैसा कि इस तथ्य से पता चलता है सकल घरेलू उत्पाद में समग्र सार्वजनिक ऋण 2003-04 के 85.9 प्रतिशत से कम होकर 2012-13 में 66 प्रतिशत रह गया है। भारत का विदेशी ऋण सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 21.2 प्रतिशत है। हमारा 292 बिलियन अमरीकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार हमें विदेशी क्षेत्र के अल्पकालिक संकट से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है।
8. इस सब के बाद, 2012-13 में सकल घरेलू उत्पाद के 4.8 प्रतिशत के चालू खाते घाटे के कारण, हाल ही में भारत के विदेशी क्षेत्र में चिंताजनक उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। इससे पूंजी प्रवाह की नाजुकता बढ़ी है क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अमरीकी फैडरल रिजर्व के मासिक बांड खरीद कार्यक्रम में कटौती के प्रतिक्रिया स्वरूप उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के बाजारों में अपने निवेश को पुन: समायोजित किया। इस स्थिति का अन्य उभरते हुए बाजारों की तुलना में भारतीय बाजारों पर कम प्रभाव पड़ा है जबकि हमारी इक्विटी मानदंड सूचकांक—सैनसेक्स दिसम्बर, 2013 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसके बावजूद हमारी विनिमय दर पर अस्थायी प्रभाव पड़ा जो तब से मध्यम और स्थिर है। हमारा वर्तमान चालू खाता घाटा 2013-14 में 3.7 प्रतिशत तक कम होने और इसके बाद उसमें लगभग 2.5 प्रतिशत की गिरावट की उम्मीद है, इसलिए हमारा विदेशी क्षेत्र में निकट भविष्य में मजबूती आएगी।
9. वित्तीय क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की जान होती है। भारत के इस क्षेत्र में सुधार निरंतर और प्रगतिशील रहे हैं। हमने वित्तीय क्षेत्र के कानूनों, नियमों और विनियमों को अनुकूल करने की प्रक्रिया आरंभ की है। हमने कम्पनियों से संबंधित नियमों को सुदृढ़ करने और उनमें संशोधन के लिए 2013 का कम्पनी अधिनियम बनाया है जिसने 1956 के अधिनियम का स्थान लिया। पेंशन फंड विनियामक को संवैधानिक प्राधिकारी बनाने के लिए एक कानून भी बनाया गया है। इससे पेंशन फंड सेक्टर को विकसित करने में मदद मिलेगी। कर कानूनों में सुधार का प्रस्ताव किया गया है जिससे राजस्व प्रबंधन का कायापलट हो जाएगा। इन्हें आम सहमति के बाद ही कार्यान्वित किया जाएगा जो भारत जैसे जीवंत संघीय लोकतंत्र में आवश्यक है।
देवियो और सज्जनो,
10. भारत तथा ज्यादातर विकासशील विश्व में विकास चुनौती अपने आप में विकास का पैमाना नहीं है। विकास में समावेशन का स्तर—विकास प्रक्रिया में जन भागीदारी की मात्रा उतना ही महत्त्वपूर्ण आयाम है। समावेशी तथा रोजगार उन्मुख कार्य-योजना की शुरुआत के लिए रोजगार सृजन और क्षमता विकास एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। हमने 2022 तक 50 करोड़ कुशल कामगार तैयार करने के लक्ष्य से 2009 में कौशल विकास पर एक राष्ट्रीय नीति अपनाई। विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थाओं और प्रबंधन स्कूलों सहित हमारे उच्च शैक्षिक ढांचे का विस्तार हुआ है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान जैसे हमारे अधिकांश संस्थान, वैश्विक स्तर की शिक्षा प्रदान करते हैं। अन्य संस्थानों के लिए हम शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने का दृढ़ प्रयास कर रहे हैं। विश्व के प्रख्यात विश्वविद्यालय भारत में शिक्षण अवसर प्रदान करने में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि भारत, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के लिए एक प्रमुख अनुसंधान गंतव्य है। 2006 में मुंबई में आरंभ इसके भारतीय अनुसंधान केंद्र ने अब तक 55 से ज्यादा अनुसंधान परियोजनाओं पर भारत के कारोबारी प्रमुखों और शिक्षा संचालकों के साथ सहयोग किया है। मैं केंद्र को बधाई देता हूं और उनसे इस श्रेष्ठ कार्य को जारी रखने का आग्रह करता हूं।
11. वित्तीय समावेशन भी एक कार्यनीति है और समावेशी विकास के लिए अनिवार्य है। प्रौद्योगिकी और संस्थागत नवान्वेषण ने हमें जनसंख्या की विशिष्ट पहचान तैयार करने के विराट कार्य करने में सक्षम बना दिया है। इससे विकासमान बैंकिंग नेटवर्क के प्रति बेहतर पहुंच हो पाएगी तथा कल्याणकारी लाभ तुरंत उपलब्ध करवाया जा सकेगा।
12. अधिक तीव्र, समावेशी और सतत् विकास ही भारत की आसन्न सच्चाई है। जैसे-जैसे मध्यवर्ग के उपभोक्ता बढ़ते जा रहे हैं, वैश्विक कारोबार के लिए बाजार के और अधिक आकर्षक होने की संभावना है। भारत की आर्थिक बुनियाद और इसकी विकास गाथा सशक्त हैं। मैं आप सभी को इस उभरती हुई कहानी का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करता हूं।
देवियो और सज्जनो,
13. विकास पर इस चर्चा में, वह याद रखना होगा, जो मार्केटिंग के प्रख्यात विशेषज्ञ फिलिप कोटलर ने कहा था, ‘‘आज अपने स्थान पर टिके रहने के लिए आपको तेजी से भागना पड़ता है’’। कारपोरेट प्रमुखों को अपने व्यवसाय को उत्कृष्ट मॉडलों के रूप में विकसित करना होगा। इसके लिए, व्यवसाय में प्रबंधन सिद्धांतों के व्यापक प्रयोग तथा उस सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता का बेहतर आकलन करने की जरूरत है जिसमें वे कार्य करते हैं। कारपोरेट जगत कोई धर्मार्थ क्षेत्र नहीं है। इसी प्रकार, वे केवल अपने शेयरधारकों के लिए लाभ कमाने के लिए ही नहीं हैं बल्कि कुल मिलाकर समाज का मूल्य वर्धन करने के लिए कार्य करते हैं। व्यवसाय प्रमुख कारोबार के इस उभरते हुए सिद्धांत को अपने कारपोरेट ढांचे में शामिल करने का प्रयास करें।
14. मुझे खुशी होगी यदि आप हार्वर्ड बिजनेस स्कूल स्वामी अध्यक्ष प्रबंधन कार्यक्रम में अर्जित कौशल को अपने उद्यमों तथा लोगों के जीवन को रूपांतरित करने के लिए प्रयोग करेंगे। मैं यहां उपस्थित आप सभी को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं संकाय सदस्यों की उनके भावी प्रयासों के सफल होने की भी कामना करता हूं।
धन्यवाद।